बिना बुलाए जाने पर मिल सकता है अपमान- ललितंबा पीठाधीश्वर
सतना से रविशंकर पाठक की रिपोर्ट

अमरपाटन में महाराज श्री के पुण्य प्रवचन
अमरपाटन
स्थानीय खर मसेडा गांव में आयोजित संगीत में श्रीमद् भागवत कथा के दौरान लालितांबा पीठाधीश्वर आचार्य श्री जय राम जी महाराज ने कहा कि कहीं भी हो और खासकर किसी सगे संबंधी के यहां बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए हो सकता है अपमान का सामना करना पड़े जैसे सती के साथ हुआ है
सती जी का पावन चरित्र सुनाते हुए बताया कि भगवान शिव के बार-बार समझाने पर सती जब नहीं मानी तब भगवान ने अपने गणों के साथ सती को अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां यज्ञ में जाने का आदेश दिया किंतु सती का पिता के द्वारा किसी प्रकार का आदर नहीं किया गया इस प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि बिना बुलाए जाने पर अपमान मिल सकता है क्योंकि दक्ष प्रजापति ने अकारण वैर के कारण भगवान शिव और सती को अपने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जाकर के सती ने भगवान शिव का स्थान ना देख कर मन में विचार किया की यदि मैं पिता के यज्ञ से जाऊंगी तो मुझे भगवान शिव मुझे दाक्षायणी कह कर पुकारेगें अभिमानी दक्ष की बेटी कह कर जब शिव पुकारेगे तब मुझे अच्छा नहीं लगेगा इसीलिए योग अग्नि में सती ने अपने शरीर को भस्म कर दिया। फल स्वरूप भगवान शिव के गणों ने दक्ष प्रजापति का सिर काटकर यज्ञ कुंड में डाल दिया इस प्रसंग का भाव बताते हुए आचार्य जीने बताया कि जिस यज्ञ में श्रद्धा और विश्वास ना हो वह यज्ञ पूर्ण नहीं होता । भगवान शिव विश्वास के प्रतीक हैं भगवती सती श्रद्धा की प्रतीक मानी जाती श्रद्धा विश्वास ना होने के कारण दक्ष प्रजापति का यज्ञ अपूर्ण रह गया देवताओं की स्तुति पर भगवान शिव जब पधारें तब दक्ष प्रजापति का यज्ञ संपन्न कराया ।मनु महाराज की तीन बेटियों के प्रसंग के बाद ध्रुव जी का पावन चरित्र गाते हुए आचार्य जी ने बताया कि 5 वर्ष के ध्रुव किस प्रकार माता सुरुचि के दुर्वचन से दुखी होकर होकर मधुबन में भगवान श्री हरि को प्रसन्न करने के लिए चले मार्ग में देवर्षि नारद नहीं ध्रुव को समझाया कि बेटा ध्रुव इस संसार में मनुष्य कर्मानुसार सुख-दुख मान- अपमान लाभ-हानि प्राप्त करता है इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को जैसी भी परिस्थिति प्राप्त हो उस परिस्थिति में भगवान का अनुग्रह मानकर रहना चाहिए किंतु ध्रुव जी नारद जी से कहा कि महाराज जी जिसका चित्त सुख दुख में चंचल हो गया हो उसके लिए आपने बहुत अच्छा उपाय बताया है किंतु मुझ जैसे अज्ञानियों की दृष्टि वहां तक नहीं पहुंच पाती ध्रुव ने कहा आपने बहुत अच्छा उपदेश किया है पर महाराज कोई व्यक्ति छलनी लेकर गाय दुहने बैठ जाएं तो क्या अमृत जैसा दूध छलनी में टिक पाएगा उसी प्रकार से मेरा भी ह्रदय माता के दुर्वचन से छलनी हो चुका है जिसमें आप का अमृत जैसा वचन मेरे ह्रदय में नहीं टिक पाएगा ।आप तो भगवत प्राप्ति का उपाय बताइए नारद जी ने ध्रुव को पात्र समझ कर द्वादश अक्षर मंत्र दे कर के मधुबन में भेजा और 5 वर्ष के ध्रुव मधुबन में जाकर भगवान श्रीहरि को 5 महीने में ही प्राप्त कर लिया ।
इस कथा का सारांश बताते हुए आचार्य जी ने बताया कि जो व्यक्ति भगवान को प्राप्त करने का मन में संकल्प कर ले तो भगवान जिस प्रकार से ध्रुव को मिले उसी प्रकार भगवान सबको प्राप्त हो सकते हैं ।।
भरत चरित्र का गायन करते हुए बताया कि भरत जैसे राजा जिनके सुयश के कारण अजनाभ वर्ष का नाम भारतवर्ष पड़ा एक करोड़ वर्ष तक राज्य सत्ता का सुख भोगने के बाद अपनी सारी संपत्ति अपने पुत्रों में विभाजन कर स्वयं राज्य छोड़ कर पुलहाश्रम क्षेत्र में गंडकी नदी के तट पर तप करने गए किंतु एक ही हिरन पर आसक्ति होने के कारण अगला जन्म हिरण का प्राप्त हुआ।
पूर्व की स्मृति के कारण सूखे पत्ते खाकर के हिरण की योनि व्यतीत कर अगला जन्म ब्राह्मण कुल में प्राप्त किया जड़ की तरह विचरण करने के कारण जड़भरत नाम पड़ा रहूगण जैसे राजा को उपदेश दिया की इस संसार में मन ही बंधन और मोक्ष का कारण बनता है ।
आचार्य जी ने बताया कि वासना बासित मन जब विषयासक्त होता है तो मनुष्य अधमता की ओर प्रवृत्त होता है जब यह मन विषयों से विरक्त होता है तो मनुष्य उत्तमताकि ओर उत्तम कोटि में आ जाता है।मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है अंतिम समय में जीव का मन जिस में आसक्त होता है अगला जन्म उसी योनि में प्राप्त होता है।
आचार्य जी ने प्रहलाद जी का पावन चरित्र गाते हुए बताया कि बार-बार हिरण्यकश्यपु के मना करने पर भी प्रह्लाद प्रभु भक्ति को नहीं छोड़े जिस पर प्रसन्न होकर के भगवान नरसिंह के रूप में प्रकट होकर हिरण्यकस्यपु का उद्धार किया इसके बाद गज ग्राह का पावन चरित्र गाते हुए बताया कि संसार ही सरोवर है जीव ही गजेंद्र है काल ही मगर है संसार के विषयों में आसक्त हुए जीव को काल का भान नहीं रहता यह जीवात्मा गजेंद्र त्रिकूटाचल पर्वत पर रहता है काम,क्रोध,लोभ यही त्रिकूट है काल सबसे पहले पांव पकड़ता है किंतु जो काल के भी काल भगवान श्री कृष्ण का अनन्य हो जाता है वह काल के प्रभाव से बच जाता है। आगे की कथा प्रसंगों में भगवान श्री राम के जन्म तथा श्री कृष्ण के जन्म का वृत्तांत सुनाकर कृष्ण जन्मोत्सव का धूमधाम के साथ आनंद उत्सव मनाकर कथा का विश्राम किया। कथा का आयोजन स्थानीय निवासी जगन्नाथ तिवारी एवं कथा व्यास प्रदीप मणि जी महाराज के द्वारा किया गया है